• Islam House
    Islam House
    ईमान बिल्लाह और तौहीद की हक़ीक़त

    इस ऑडयिों में उन बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर हमारे संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें ईमान लाने का आदेश दिया है, और उनमें सर्व प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण अल्लाह पर ईमान लाना अर्थात ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का इक़रार करना है। जिस पर इस्लाम की आधारशिला है, और जिसके द्वारा एक मुसलमान के बीच और एक काफिर, मुश्रिक और नास्तिक के बीच अंतर होता है। लेकिन केवल इस कलिमा का उच्चारण मात्र ही काफी नहीं है, बल्कि उसके अर्थ और भाव पर पूरा उतरना ज़रूरी है। इसी तरह ‘इलाह’ (पूज्य) का अर्थ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ की वास्तविकता का उल्लेख करते हुए, मानव जीवन में इस कलिमा के प्रभावों का उल्लेख किया गया है। अंत में उन अवशेष बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर ईमान लाने का पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें आदेश दिया है, और वे : अल्लाह के फरिश्तों, उसकी पुस्तकों, उसके पैगंबरों, परलोक के दिन, और अच्छी व बुरी तक़्दीर (भाग्य) पर ईमान लाना, हैं।

    ईमान बिल्लाह और तौहीद की हक़ीक़त
  • Fayd Allah Al-Madani
    Fayd Allah Al-Madani
    पूजा के कृत्यों में शिर्क

    अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ शिर्क (बहुदेववाद) इस धरती पर अल्लाह की सबसे बड़ी अवज्ञा है। वास्तव में यह सबसे बड़ा अन्याय, सबसे बड़ा अत्याचार, सबसे बड़ा पाप, सबसे बड़ा भद्दा और सबसे बड़ा अपराध है। क्योंकि इसका संबंध सर्वसंसार के पालनहार सर्वशक्तिमान अल्लाह के साथ है। अनेकेश्वरवादियों का अधिकांश शिर्क अल्लाह की उपासना व पूजा कृत्यों में घटित हुआ है। जैसे- अल्लाह को छोड़कर दूसरों को पुकारना, विनती करना, या पूजा के कृत्यों में से किसी प्रकार को ग़ैरुल्लाह के लिए करना, जैसे कि अल्लाह के अलावा के लिए जानवर का बलिदान, मन्नत मानना, भय, आशा, प्रेम, तवक्कुल (भरोसा), इत्यादि। प्रस्तुत आडियो में इसी पर चर्चा किया गया है।

    पूजा के कृत्यों में शिर्क
  • Ata’a Alrahman Deya’a Allah
    Ata’a Alrahman Deya’a Allah
    अल्लाह पर ईमान और एकेश्वरवाद की वास्तविकता

    इस ऑडयिों में उन बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर हमारे संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें ईमान लाने का आदेश दिया है, और उनमें सर्व प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण अल्लाह पर ईमान लाना अर्थात ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का इक़रार करना है। जिस पर इस्लाम की आधारशिला है, और जिसके द्वारा एक मुसलमान के बीच और एक काफिर, मुश्रिक और नास्तिक के बीच अंतर होता है। लेकिन केवल इस कलिमा का उच्चारण मात्र ही काफी नहीं है, बल्कि उसके अर्थ और भाव पर पूरा उतरना ज़रूरी है। इसी तरह ‘इलाह’ (पूज्य) का अर्थ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ की वास्तविकता का उल्लेख करते हुए, मानव जीवन में इस कलिमा के प्रभावों का उल्लेख किया गया है। अंत में उन अवशेष बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर ईमान लाने का पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें आदेश दिया है, और वे : अल्लाह के फरिश्तों, उसकी पुस्तकों, उसके पैगंबरों, परलोक के दिन, और अच्छी व बुरी तक़्दीर (भाग्य) पर ईमान लाना, हैं।

    अल्लाह पर ईमान और एकेश्वरवाद की वास्तविकता