मुसलमान हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-के विषय में क्या कहते हैं?
हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- की शिक्षाओं और उनके गुणों कोध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि उनके इन शिक्षाओं और गुणों को बहुत सारे लोगों ने माना है, इस पर इतिहास गवाह है. यहां तक कि खुद अल्लाह सर्वशक्तिमान के द्वारा इसकी गवाही दीगई है.यहाँ हम हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-कीविशेषताओं उनके नैतिकताओं,और गुणों को एक आंशिक सूची में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते हैं:
क) स्पष्टवादी:जबकि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-पूरी जीवन भर में कभी लिखना और पढ़ना नहीं सीखे, और न कभी कुछ लिखे पढ़े इस के बावजूद वह बिल्कुल स्पष्ट और निर्णायक संदर्भ में और शास्त्रीय अरबी भाषा की सबसे अच्छी विधिमें बात करते थे.
ख) बहादुरी:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-की बहादुरी और हिम्मत की उनकी जीवन में ही और उनके निधन के बाद भी सब ने प्रशंसा की थी, बल्कि इस बात को उनके अनुयायियों और उनके विरोधियों सब ने माना था,वह हमेशा मुसलमानों और यहां तक किगैर मुस्लिमों के लिए भी सदियों भर में हमेशाएकउदाहरण रहे जिनकी पैरवी की जाती रही है.
ग) विनम्रता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-हमेशा दूसरों की भावनाओं और जज़्बात को अपनी खुद की भावनाओं से आगे रखते थे, वह सारे मेहमाननवाजों के बीच सब से अधिक अच्छा बर्ताव करने वाले मेहमाननवाज थे, और जहाँ भी जाते थे सब से अच्छा शिष्टाचार वाले मेहमान होते थे.
घ) ईमानदारी और सच्चाई:हज़रत मुहम्मद--उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- अपने संदेश और उपदेश को पूरी दुनिया तक पहुँचा देने के लिए सदा पक्का इरादा रखे और अथक कोशिश करते रहे.
ड़) वक्तृत्व:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-ने दावा किया था कि वह कवि नहीं है, इसके बावजूद वह अपनी बात को सबसे अधिक संक्षिप्त तरीकेसे व्यक्त करते थे, उनकी बात में शब्द तो बहुत थोड़े होते थे लेकिन उस में अर्थों का समुद्र होता था, और उनकी बात अरबी भाषा के सारे गुणों को अपने अंदर समेटे होती थी.उनके शब्दों से आज भी सारी दुनिया में करोडोँ मुसलमान औरगैर-मुस्लीम मार्गदर्शन लेते हैं और उनकी बातों का हवाला देते हैं.
च) मित्रतापूर्ण:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपने जानपहचान के लोगों के बीच विख्यात थे कि वह सबसे अधिक अनुकूल, दया और प्यार वाले हैं और वह सब से अधिक लोगों की भावनाओं का ख्याल रखने वाले हैं यह बात सभी जानते थे.
छ) उदारता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपनी संपत्ति को दुसरों पर खर्च करने में सब से अधिक दरयादिल थे, उन्होंने कभी भी किसी ऐसी चीज़ को रोक कर रखने की इच्छा नहीं रखी जिसकी लोगों को आवश्यकता हो,बल्कि उनकी सदा और अपनी प्रत्येक संपत्ति में यही स्तिथि रही, भले चांदीहो या सोना, पशु हो या खाने पिने की कोई चीज़ सब को दरयादिली से देते थे.
ज) मेहमाननवाजी:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपने मेहमानों की खातिरदारी में विशेष रूप से नामवर थे, केवल यही नहीं बल्कि अपने साथीयों और अनुयायियों को भी सिखाया कि अपने मेहमानों की अधिक से अधिक खातिरदारी करें, क्योंकि यही इस्लाम धर्म का उपदेश है.
झ) बुद्धि:अनगिनत विद्वानों और टिप्पणीकारों के द्वारायह घोषित किया गया है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-पुरे इतिहास भर में सबसे अधिक बुद्धिमान थे, और यह बात ऐसे विद्वानों के द्वारा कही गई है जिन्होंने हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-की जीवन को अच्छी तरह से पढ़ा है.
ञ) इंसाफ:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपने सारेव्यवहारों में चाहे लेनदेन हो या शासन या और कोई बात सब के सब में बे-हद्द इंसाफपसंद पसंद थे, और उन्होंने प्रतयेक मोड़ पर न्याय कर के दिखाया.
ट)अच्छा व्यवहार:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-बहुत अच्छे बर्ताव वाले थे, जिस किसी से भी मिलते थे उनका ख्याल रखते थे.उन्होंने प्राणी की पूजाकीबजायनिर्माता की पूजा की ओरलोगों को आमंत्रित करने में अथकसंघर्ष की, उन्होंने इस के लिए सबसे अच्छा और बिल्कुल उचित तरीका अपना या, जिनके द्वारा दुसरों का अधिक से अधिक ख्याल रखा जा सके और किसी का दिल न दुखे.
ठ) प्यार:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-को अल्लाह से बहुत लगाव था, इस में उनके साथ किसी की भी बराबरी नहीं हो सकती है, इस के साथ साथ वह अपने परिवार, दोस्तों, साथियों से भी बहुत प्यार रखते थे, केवल यही नहीं बल्कि वह तो उनसे भी प्यार रखते थे जो उनके संदेश को स्वीकार नहीं किए थे और उनके और उनके अनुयायियों के साथशांतिपूर्ण रूप से रहते थे.
ड) दया के पैगंबर:अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पवित्र कुरान में इस बात को सपष्ट कर दिया है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-को सारे संसारों के लिय दया बनाकर भेजा है, मानव जाति और जिन्न सभी के लिए उनको दया बनाया.
ढ)महानताऔर शराफत:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-सबसे महान और शरीफ थे, और महानता ही उनकी पहचान थी,और सभी लोगों को उनके पवित्र चरित्र औरसम्मानजनक पृष्ठभूमि का पता था.
ण) अद्वैतवादी:हज़रत मुहम्मद--उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अल्लाह सर्वशक्तिमान की एकता या एकेश्वरवाद की घोषणा के लिए प्रसिद्ध थे (जिसे अरबी भाषा में "तौहीद"कहते हैं).
त) धैर्य: हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-सबसे अधिक सहनशील औरधैर्यवान थे, और उन सारे परीक्षणों और कठनाईयों में उन्होंने धैर्यका ही सहारा लिया जिनका उनको जीवन में सामना करना पड़ा था.
थ) शांत और चैन:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-सदा बिल्कुल स्थिर और शांत रहते थे, किसी भी अवसर पर घमंडी नहीं दिखाते थे, और न चीखपुकार नहीं करते थे.
द) एक से अधिक उपाय निकालने का कौशल:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-बहुत चतुर और अधिक से अधिक उपाय निकालने का कौशलरखते थे, और न सुलझने वाली समस्याओं की गुत्थियां सुलझाते थे, और गंभीर से गंभीर कठिनाइयों निपटते थे.
ध)साफ़ और सीधी बात:यह बात सभी जानते थे कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- साफ़-सुथरी और खरी-खरी बात करते थे, और किसी भी विषयको स्पष्ट और सीधा बिना भूलभुलैया में डाले बताते थे.वह कम शब्दोँ में अधिक मकसद बयान कर देते थे, वह ज़ियादा बात को समय बर्बाद करने के बराबर मानते थे जिसका कोई फल नहीं.
न) दयाशीलता:हज़रत मुहम्मद -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो- लोगों के साथ अपने व्यवहार में बेहद दयालु और विनम्र थे.वह कभी भी किसी मनुष्य के सम्मानकाअपमाननहीं किये, हालांकि अविश्वासियों और अधर्मियों की ओर से लगातार आपको गालीगलौच किया जाता था.
प) विशिष्टता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-जैसा कि अब भीदुनिया भर में जाना जाता है कि वह सब से अधिक प्रभावशाली थे और हैं, और अतीत और वर्तमान दोनों में बहुत सारे लोगों की जीवन को प्रभावित किया और कियामत तक करते रहेंगे.
फ) साहसऔरवीरता:सच तो यह है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-वीरताऔर बहादुरी जैसे शब्दों को अपनी वीरता के द्वारानए अर्थ दिये, वह सदा और सारे मामलों में सब से अधिक शेरदिल थे, चाहे अनाथों के अधिकारों की रक्षा करने का मामला हो या विधवाओं के सम्मान और इज्ज़त बचाने की बात हो, या संकट में पड़े लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने का मामला हो, सब में आगे आगे रहते थे, वह कभी भी भयभीत नहीं हुवे, भले ही लड़ाई के मैदान मेंउन के खिलाफ लड़ने वाले शत्रुओं के सेना की संख्या बहुत अधिक होती थी,वह सत्य और स्वतंत्रता की रक्षाकरने में अपने कर्तव्यों से कभी पीछे नहीं हटे.
ब) उनका "वली" होना:अरबी शब्द"वली" एकवचन है और उसका बहुवचन "औलिया"है, और इस शब्द का दूसरी भाषा में अनुवाद करना मुश्किल है, इस कारण इसे अरबी मेंही रखा गया है, लेकिन यह पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-के व्यक्तित्व की विशेषताओं में सबसेमहत्वपूर्ण पहलु है, इस लिए यहाँ इसके विषय में एक संक्षिप्तविवरण प्रस्तुत है.कुछ लोगों का कहना है की इस शब्द का अर्थ "संरक्षक" है,और अन्य कहते हैं कि इस का अर्थ "प्यारा"या यूँ कहये कि जिस में आप पूर्ण विश्वास कर सकते हैं,और अपने रहस्यों के विषय में उस पर पूरा पूरा भरोसा करते हैं जैसा कि कैथोलिक ईसाई अपने पादरियों के साथ करते हैं, और आसानी और सादगी से उनको "friends" या "मित्र" का नाम दे देते हैं, और जब मैं इस विषय पर मेरेएक प्रिय शिक्षक, सलीम मॉर्गन के साथ विचार कर रहा था तो उन्होंने मुझ से कहा की इस शब्द का सब से अच्छा और बिल्कुल उचित अंगरेजी शब्द "ally"या मित्र है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति किसी से अपना लगाव या किसी के ओर झुकाव जताता ही तो ऐसा ही है जैसे कि वह उसको अपना "वली" या मित्र बना लिया, अरबी भाषा में इसे ही "बैअत" (निष्ठा) कहा जाता है,अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पवित्र कुरान में हमें आदेश दिया है कि अल्लाह को छोड़ कर हम यहूदियों और ईसाइयों को "औलिया" या मित्र न बनाएँ, हालांकिधर्मग्रंथ वाले या यहूदी और ईसाई ईमान और विश्वास में हम से बहुत करीब हैं, इसके बावजूद भी हम को यही आदेश है कि हम उनको अपना पंडित या मित्र या "अंतरंग मित्र" न बनाएँ, और अल्लाह सर्वशक्तिमान और उसके पैगंबरहज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-को छोड़ कर उन से लगाव न रखें. निस्संदेहपैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-वफादारी के सबसेसुन्दर उदाहरण थे, प्रत्येक समय के लिए सारे मनुष्यों के लिए सबसे अधिक भरोसेमंद विश्वसनीय थे, यदि उनके पास कोई रहस्य याराज़ रखा जाता था या वह "वली" और मित्र के स्थल में होते थे तो कभी भी उस राज़ को हरगिज़ नहीं खोलते. इसलिए लोग उनको सारे मनुष्यों में सबसे बढ़ कर भरोसा और विश्वास के योग्य समझते थे.
भ)लिखना पढ़ना:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-न तो लिखते थे और न पढ़ते थे बल्कि सच तो यह है कि वह अपना नाम भी नहीं लिखते थे,और यदिआज की दुनिया में वह होते तो शायद"हस्ताक्षर" की जगह में "एक्स" या अंगूठे के ठप्पे का प्रयोग करने को कहा जाता था, लेकिन उस समय वह अपने दाएँ हाथ की छोटी उंगली में एक अंगूठी पहनते थे जिस से वह दस्तावेज़ होगा.वह एक मुहर अपने अधिकार को किसी भीदस्तावेज या अन्य देशों के नेताओं और रहनुमाओं की ओर भेजे जाने वाले पत्रों पर मुहर लगाया करते थे.
म) आज्ञाकारिता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-अपनी इच्छाओं और अपने विचारों को अल्लाह सर्वशक्तिमान के आदेशों के सामने कुरबान कर देते थे, बल्कि वह अक्सरअपने अनुयायियों की राय को खुद अपने विचारसे आगे रखते थे, और जितना संभव हो सकता था दूसरों की बात को स्वीकार कर लेते थे.
य) उत्साह:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-अल्लाह सर्वशक्तिमान के दूतों और पैगम्बरों के बीच अपने कर्तव्य कोनिभानेमें बहुत चुस्त थे, मतलब इश्वर की इच्छा को प्रस्तुत करने के माध्यम से शांति प्राप्त करें यही उनका मिशन था, निस्संदेह वह अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से सौंपे हुवे संदेश सारे मनुष्यों तक पहुँचने के लिए बहुत अधिक उत्साहित थे, वही संदेश " ला इलाहा इल्लाह मुहम्मदुर-रसूलुल्लाह" अल्लाह को छोड़ कर कोई पूजे जाने का योग्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह का दूत हैं.(मतलब:अल्लाह को छोड़ कर कोई सत्य खुदा नहीं और मुहम्मद अल्लाह का दूत हैं)
हम जितना कुछ भी कहें और जितनी भी उनकी तारीफ़ करें वह सब आरम्भ भी है उनके गुणों की सीमा तक कौन है जो पहुँच सके.
हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और स
लाम हो-सचमुच हर मामले में अद्भुतथे.उन्होंने एक ऐसा सम्पूर्णसंदेश दिया जो जीवन के सारे पहलुओं को शामिल है, नींद से जागने से लेकर फिर बिस्तर पर जाने तक का और जन्म से लेकर मृत्युतकका सारा रास्ता खोल खोल कर बयान कर दिया गया है, यदि मनुष्य जीवन में उस तरीके या धर्म को अपना ले तो वह इस जीवन में और अगले जीवन में भी सबसे बड़ी सफलता प्राप्त कर लेगा.