ह़ज़रत आ़एशा रद़ियल्लाहु अ़न्हा कहती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "मुर्दों को गाली मत दो क्योंकि वह अपने किए को पहुंच गए हैं।"
इस्लाम से पहले जाहिली समय में अरब के लोग अपने पूर्वजों पर बहुत गर्व करते थे जिसकी वजह से जिंदो की बुराई और मुर्दों को गाली-गलौच होती थी। वे अपने शायरों यानी कवियों को अपनी अच्छाइयाँ और दूसरों के एब और बुराइयाँ बयान करने पर उकसाते थे जिसकी वजह से उनके दिलों में आपस में हसद, कीना, नफरत और दुश्मनी घर कर जाती। और नतीजा यह होता कि खूब ज़्यादा फितने और फसाद होते और हमेशा जंगे छिड़ी रहती थीं। लेकिन जब इस्लाम आया तो उसने इस परिवारी कट्टरता को खत्म कर दिया और इसके खतरों को साफ तौर पर जाहिर कर दिया। तथा रसूले करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम लोगों को अच्छे अखलाक और बेहतर व्यवहार की शिक्षा देते रहे यहाँ तक कि वह अपने अल्लाह से जा मिले और लोगों में मोहब्बत और भाईचारा फैल गया और वे सीधे रास्ते पर आ गए जिस से सिर्फ बेवकूफ और नादान व्यक्ति ही भटका हुआ था। अल्लाह ने दूसरों पर हंसने यानी उनकी मजाक उड़ाने, उन्हें कम समझने, उनका अपमान करने और इन जैसी दूसरी उन तमाम बातों से मना किया जो गुरूर और घमंड की निशानी हों। और दूसरों को बुरे नामों से पुकारने से भी मना किया कि जिन्हें इंसान पसंद नहीं करता है। और इन सब चीजों के करने को गुनाह और सच्चे मुसलमान की विशेषताओं के खिलाफ बताया। हम यहाँ यह साफ कर देना चाहते हैं कि गाली-गलौच से मुराद हर वह बात है जिससे मुर्दों और जिंदो को तकलीफ पहुंचे। क्योंकि मुर्दों को गाली देने से उनके ज़िंदा रिश्तेदारों, पड़ोसियों, दोस्तों, मिलने वालों और उन सभी लोगों को तकलीफ होती है जो इंसानी और जिंदा ज़मीर और अपने सीनों में रहम और दयालु दिल रखते हैं।