ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह बिन ज़ुम्अ़ह रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "तुममें से कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को गुलामों की तरह कोड़ों से न मारे कि फिर रात को उससे संभोग करेगा।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान "तुम में से कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को गुलामों की तरह कोड़े से ना मारे।" का मतलब है कि बहुत ज्यादा ना मारे जैसा कि अपने गुलाम को मारता है। इमाम मुस्लिम की रिवायत में है: "अपनी दासी की तरह ना मारे।"
अरब के लोग अक्सर अपने गुलामों और दासियों को बहुत ज्यादा मारते थे या तो इसलिए कि वे उनका सम्मान नहीं करते थे या इसलिए कि वे सही तौर पर काम नहीं करते थे।
ह़दीस़ पाक में कोड़े से मारने से मुराद बहुत ज्यादा मारना-पीटना है चाहे वह किसी भी चीज के जरिए हो जिससे मारा जाता हो।
ह़दीस़ पाक में पूरे तौर पर मानने से मना नहीं किया गया है बल्कि मारने का तो इसमें सुबूत है। हाँ अलबत्ता बहुत ज्यादा मारने से मना किया गया है। इसलिए की पत्नी कुछ वजहों से दासी की तरह है। वह अपने पति पर निर्भर है। और उसके इतने ही अधिकार हैं जितनी उसके ऊपर जिम्मेदारियाँ हैं। लेकिन पुरुष को उस पर बरतरी हासिल है इस माना कर कि उसके धार्मिक और सांसारिक मामलों में पुरुष उसका जिम्मेदार है। इसी वजह से अल्लाह ने महिला पर पुरुष की आज्ञा का पालन करने को जरूरी करार दिया है बशर्ते कि वह गुनाह का आदेश ना दे। तथा इस वसियत से यह भी लिया जाता है कि आदर्श पति अपनी पत्नी को उस समय तक नहीं मारता है जब तक की बहुत सख्त खिलाफ ना हो जाए और वह मारने पर मजबूर ना हो जाए। तथा याद रखना चाहिए कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने कभी भी अपनी किसी पत्नी को नहीं मारा। और यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम जब पत्नी को मारने की इजाजत दी तो उसके लिए शर्तें और नियम भी रखे हैं ताकि कोई इस मामले में लापरवाही और ज़्यादती से काम न ले। तो इजाजत इसलिए है कि जरूरत के समय थोड़ा बहुत मारा भी जा सकता है। और मनादी इस पर उभारने के लिए है कि सवाब की उम्मीद रखते हुए पत्नी के साथ सब्र और बर्दाश्त से काम ले लिया जाए। क्योंकि सब्र और बर्दाश्त से काम लेने में बहुत ही ज्यादा सवाब है।