मअ़रवर बिन सुवैद रद़ियल्लाहु अ़न्हु कहते हैं: मैंनें अबूज़र ग़िफारी रद़ियल्लाहु अ़न्हु को देखा कि उनके बदन पर भी एक जोड़ा था और उनके गुलाम के बदन पर भी उसी प्रकार का एक जोड़ा था। मैंने उसका कारण पूछा तो उन्होंने बतलाया कि एक बार मेरी एक साहब से कुछ गाली-गलौच हो गई थी तो मैंने उन्हें उनकी माँ की शर्म दिला दी। उन्होंने नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से मेरी शिकायत कर दी। तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मुझसे पूछा: "क्या तुम ने उन्हें उनकी माँ की तरफ से शर्म दिलाई (यानी गाली दी) है? तो तुम ऐसे शख़्स हो जिसमें जाहिलयत है। तुम्हारे भाई तुम्हारे ग़ुलाम (या नौकर) हैं। अल्लाह तआ़ला ने उन्हें तुम्हारे मातहत कर दिया है। लिहाज़ा जिसका भाई उसके मातहत हो तो उसे चाहिए कि वह उसे वही खिलाए जो खुद खाता है। और वही पहनाए जो खुद पहनता है। और उन पर उनकी ताकत से ज़्यादा बोझ ना डालो लेकिन अगर (उनकी ताकत से ज़्यादा वोझ) डाल दो तो फिर उनकी खुद मदद भी करो।"
जरा गौर करें कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने यह फ़रमाया कि तुम्हारे भाई तुम्हारे गु़लाम (या खादीम और नौकर) ही हैं इसका उलटा यानी यह नहीं फ़रमाया कि तुम्हारे गुलाम (या खादिम) तुम्हारे भाई हैं। इसकी वजह यह है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम गुलाम और खादीमों के लिए भाईचारे को जो़रदार तरीक़े से साबित करना चाहते हैं। क्योंकि खादिमों यानी नौकरों का हर समय अपने आकाओं (यानी मालिकों) के साथ रहना किसी हकीकी और सगे भाईचारे से कम नहीं है जबकि ईमान ही उसकी बुनियाद हो।
तथा कभी-कभार खादिम अपने आका़ के लिए वह कुछ कर देता है जो उसका सगा भाई भी नहीं कर सकता। इसीलिए अ़रबी भाषा में एक कहावत है जिसका मतलब है:" आपके बहुत से भाई ऐसे भी हैं जिन्हें आप के माने माने नहीं जाना है।"
अल्लाह ताआ़ला ने क़ुरआन मजीद की बहुत सी आयतों में इस्लामी भाईचारे पर ज़ोर दिया है जैसा कि इस आयत में है:
सब मिलकर अल्लाह की रस्सी मजबूती से थाम लो और आपस में बट ना जाना और अल्लाह का एहसान अपने ऊपर याद करो जब तुम (एक दूसरे के) दुश्मन थे तो उसने तुम्हारे दिलों में मिलाप कर दिया। तुम उसकी नेमत से आपस में भाई भाई हो गए।
(सूरह: आले इ़मरान, आयत संख्या: 103)
लिहाज़ा आक़ा को चाहिए कि वह अपने खादिम के साथ दया, रहमत और नरमदिली से पेश आए। उसकी भावनाओं की इज़्ज़त करे। उसकी हालतों का ख्याल रखे। उसकी जरूरतों को पूरा करे। और उसे भी अच्छी जिंदगी से आनंद लेने दे।
अगर आका़ अपने खादिम यानी नौकर को अपनी जिंदगी की आनंद के सामान में से कुछ दे देगा और उसकी जरूरतों का ख्याल रखेगा तो वह खुश हो जाएगा। उसके दिल में हसद, जलन, अपनी ज़िल्लत और महरूमी का ख्याल ना आएगा। और अपने आपको परिवार एक सदस्य समझेगा। ऐसी सूरत में वह अपनी जिम्मेदारी भी अच्छी तरह अदा करेगा जिससे उसका आक़ा खुश रहेगा और हमेशा इस बात का ख्याल रखेगा कि कभी ऐसा काम ना करे जिससे उसका आक़ा यानी नाराज़ हो जाए और अगर कभी ना कभी उससे कुछ ऐसा काम हो जाए जिससे उसका मालिक नाराज़ हो तो वह उस पर शर्मिंदगी महसूस करेगा और फौरन माफी मांग लेगा। लिहाज़ा खादिम आपकी इतनी ही फरमा बरदारी करेगा जितना आप उसे देंगे। और आपके फायदे का इतना ही ख्याल करेगा जितना आप उसकी भावनाओं की कद्र करेंगे और जितना आप उसे सम्मान देंगें।
नौकर यानी खादिम या तो ईमानदार होगा या खयानत करने वाला, अगर ईमानदार हो तो इनाम से नवाजना चाहिए और अगर खयानत करने वाला हो तो उसे बेदखल कर देना चाहिए।
भले इंसान को जब आप सम्मान देंगें तो वह आपका हो जाएगा। उसकी भावनाएँ आपकी आशिक़ हो जाएंगी। वह आपका फरमाबरदार यान आज्ञाकारी हो जाएगा। आपके परिवार से प्यार और मोहब्बत करेगा। और आपकी मौजूदगी और गैरमौजूदगी दोनों सूरतों में वह आपके लिए भलाई का चाहने वाला हो जाएगा। लेकिन कमीने शख्स को आप जितना भी दे दें वह आपका शुक्रिया अदा नहीं करेगा। जितनी भी आप उसके साथ भलाई करलें लेकिन वह आपके साथ भलाई नहीं करेगा।
और नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम हमारे लिए बेहतरीन आदर्श हैं। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम खुशी-खुशी घर के कामों में अपनी बीवियों की मदद करते और उनका हाथ बटाते जैसे कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम खुद ही अपने कपड़े सी लेते और खुद ही अपनी चपलें दुरुस्त कर लेते और इनके अलावा दूसरे बहुत से काम भी खुद ही कर लेते।
इसी तरह अपने सहा़बा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम के साथ भी उनके कामों में शिरकत करते और उनकी मदद करते और अपने आपको उनसे अलग करना पसंद नहीं करते। बल्कि जो काम उनसे नहीं होता उसे आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अंजाम देते थे।