अबरहा का काबा को विध्वंस करने का मक़सद लोगों को उससे विचलित करना था, ताकि वे उस चर्च की ओर तीर्थ यात्रा करें जिसे उसने यमन में बनाया था। मक्का वाले डर के मारे पहाड़ों पर चले गए। अबरहा ने अपनी फौज के साथ प्रवेश किया, और उसके साथ एक बड़ा हाथी था, वह काबा को गिराने के लिए उसकी ओर बढ़ा, लेकिन अल्लाह ने हाथी को आदेश दिया कि वह अपने स्थान से न हिले, चुनाँचे हाथी बैठ गया। लोग उसे मारते थे, लेकिन वह अपने स्थान से हिलने के लिए तैयार न हुआ। अल्लाह ने छोट छोटे पक्षि भेजे जो अपने पैरों में आग की कंकरियाँ उठाए हुए थे, वे अबरहा की फौज को क़त्ल कर रहे थे। इस तरह अल्लाह ने बैतुल हराम को विध्वंस से बचा लिया।
अब्दुल्लाह की मृत्यु हो गर्इ, और आमिना अपने पति के घर में अपने शिशु के आगमन की प्रतीक्षा करने लगीं। एक दिन मक्का वाले डरे और घबराए हुए बाहर निकले, उन्हें पता चला था कि अबरहा एक बड़ी फौज लेकर आ रहा है जिसके आगे-आगे एक भारी हाथी चल रहा है, और वह अल्लाह के पवित्र घर काबा को विध्वंस करने के लिए आ रहा है। अबरहा ने अब्दुल मुत्तलिब के कुछ ऊँट पकड़ लिए थे, इसलिए अब्दुल मुत्तलिब ने उससे मिलना चाहा। जब अब्दुल मुत्तलिब ने अबरहा से बात की, तो उससे कहा : तू ने मेरे कुछ ऊँट ले लिए हैं, अत: उन्हें वापस कर दे। अबरहा ने कहा : मैं ने तुझे यह समझा था कि तू मुझ से यह कहने के लिए आया है कि अल्लाह के पवित्र घर को न गिराओ। तो अब्दुल मुत्तलबि ने उसका उत्तर देते हुए कहा : जहाँ तक ऊँटों का मामला है तो मैं उनका मालिक हूँ, और काबा के घर का एक मालिक है, जो उसकी रक्षा करेगा।