अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने हर मुस्लिम महिला और पुरुष को सुहागरात में सम्भोग (सेक्स) से पहले अच्छी नियत करने की वसियत की है। इसीलिए हर मुस्लिम पति - पत्नी को सम्भोग व शारीरिक संबंध के द्वारा भूमि का आबाद करने में अल्लाह की आज्ञा का पालन करने, मुस्लिम संतान व नस्ल बढ़ाने, अपने आप को पापों से बचाने और नेक बच्चों की आशा व इच्छा करनी चाहिए जो अपने मां बाप की आंखों की ठंडक व सुकून हों और उनके मरने के बाद उनके लिए दुआ़ करके उन्हें लाभ व फ़ायदा पहुंचाएं। इस बारे में ह़ज़रत अबु ज़र - अल्लाह उनसे प्रसन्न हो - से उल्लेख है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के कुछ साथियों व स़ह़ाबा ने उनसे कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! धनी व माल्दार लोग हम से ज़्यादा नेकियां कमाते हैं, क्योंकि जैसे हम नमाज़ पढ़ते वे भी पढ़ते हैं, जैसे हम रोज़े रखते हैं वे भी रखते हैं, और वे अपने बचे हुए धन से सदका़ भी देते हैं (लेकिन हम गरीब लोग सदका़ नहीं दे पाते हैं ), तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: " क्या अल्लाह ने तुम्हारे लिए वह चीजें न बनाईं जिनसे तुम सदका़ कर सको?! बेशक हर तसबीह़ (यानी सुब्हा़नल्लाह कहना) सदका़ है, हर तकबीर (यानी अल्लाह हू अकबर कहना) सदका़ है,बुराई से रोकना सदका़ है, और तुम्हारे सम्भोग (पत्नी के साथ सेक्स करने) में सदका़ है। " तो उन्होंने (हैरानी में ) कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हम में से कोई एक अपनी (सम्भोग की) इच्छा पूरी करता है तो क्या उसमें भी उसे स़वाब (पुण्य) मिलता है? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "अगर वह ह़राम ([1]) जगह में अपनी इच्छा पुरा करता तो क्या उसे गुनाह नहीं मिलता?" उन लोगों ने कहा: क्यों नहीं (यानी गुनाह ज़रूर मिलता), तो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "इसी तरह से जब वह जायज़ जगह में अपनी इच्छा पूरी करेगा तो उसे स़वाब मिलेगा।"  (2)

नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की इस वसियत से यह सीख मिलती है कि जायज़ काम अच्छी नियतों के द्वारा इ़बादतों में बदल जाते हैं, इसी तरह सम्भोग (पत्नी के साथ सेक्स करने ) से अगर पत्नी का अधिकार देने, और उसके साथ अच्छा व्यवहार करने जैसा कि अल्लाह ने आदेश दिया है, या नेक बच्चे, या अपने आप या पत्नी को पवित्र रखने, और नाजायज़ व ह़राम काम या उसकी इच्छा व सोच से बचने की नियत करे या इनके अलावा दुसरे अच्छे कामों की नियत करे तो उसका अपनी पत्नी के साथ सम्भोग करना भी इ़बादत हो जाता है।(3)

सुहागरात में पति - पत्नी के लिए नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की इस वसियत से ओर भी निम्नलिखित सीखें मिलती हैं :

(1) अच्छाई व भलाई के कामो में मुसलमानों का प्रतिस्पर्धा व मुका़बला करना, और बहुत ज़्यादा स़वाब व पुण्य प्राप्त करने की इच्छा रखना, और उसमें कमी हो जाने पर उनका अफसोस करना।

(2) इस्लाम में इ़बादत के अर्थ की सीमा बहुत बड़ी है, वास्तव में इ़बादत हर उस कार्य को शामिल है जो एक मुस्लिम अच्छी नियत व नेक इरादे से करता है भले ही वह काम जायज़, साधारण और जन्मजात व फितरती कामों में से हो। (4)

(3)  इस बात का बयान की मुसलमान को गुनाह व नाजायज़ काम को छोड़ने पर स़वाब व पुण्य मिलता है जैसा कि उसे नेक काम करने व आज्ञा का पालन करने पर स़वाब मिलता है जबकि उसकी नियत अल्लाह की आज्ञा का पालन करना हो।


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([1]) ह़राम जगह में अपनी इच्छा पुरा करने का मतलब है: ज़िना करना

([2]) यह ह़दीस़ सही़ह़ है, मुस्लिम (1006), अह़मद (5/167,168) बइहक़ी “ सुनने कुबरा ” (4/188)

([3]) सही़ह़ मुस्लिम पर इमाम नववी की शरह़ में (7/92)

([4]) नुज़हतुल मुत्तक़ीन (1/151)