ह़ज़रत अ़त़ा बिन अबी मुस्लिम अ़ब्दुल्लह ख़ुरासानी रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "एक दूसरे से मुसाफा करो (यानी हाथ मिलाओ) नफरत दूर होगी। और एक दूसरे को उपहार दो आपस में प्यार बढ़ेगा और दुश्मनी दूर होगी।"
इस्लाम भाईचारे, भलाई, नेकी पर मदद करने और हर बात और हर काम में अल्लाह के लिए ईमानदारी से काम लेने का धर्म है।
और सच्चा मोमिन वह है जिसके दिल में अपने मुसलमान भाई के लिए किसी तरह का कोई हसद ना हो और ना ही कोई ऐसा काम करे जिससे इमानी रिश्ते में कोई दरार पड़े। बल्कि वह तो हमेशा जहाँ तक हो उससे हो सकता है प्यार व मोहब्बत को बाकी रखने की कोशिश करता है। तो एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिए बिल्डिंग की तरह है जिसे एक दूसरे से ताकत मिलती है। तो अगर शैतान के बहकाने की वजह से एक मुसलमान और उसके भाई मुसलमान के बीच रिश्ते में कोई दरार पड़ जाए तो मुसलमान को चाहिए कि खतरा बढ़ने से पहले ही फौरन अपनी गलती का भुगतान भरदे, शैतान से अल्लाह की पनाह मांगे, अपने मुसलमान भाई से माफी मांगे, तौबा व इस्तिगफार करे और पहले से बेहतर होने का पक्का इरादा करे।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान "एक दूसरे से मुसाफा करो (यानी हाथ मिलाओ) नफरत दूर होगी।" में दिलों में मोहब्बत पैदा करने और उनसे हसद और दुश्मनी दूर करने का एक बेहतरीन जरिए की तरफ रहनुमाई की गई है। जब मुसलमान मुसाफा करते समय हाथ में हाथ देते हैं तो गोया कि वह नए सिरे से प्यारों व मोहब्बत और भाईचारे का वादा करते हैं और हाथों का मिलना दिलों के मिलने का कारण होता है। तो जब दो मुसलमान भाई आपस में भलाई के साथ मिलते हैं और उनमें से हर एक खुश दिली से अपनी हथेली दूसरे की हथेली में रखता है तो उन्हें इस बात का यकीन हो जाता है कि उनके दरमियान अब सारी दुश्मनी खत्म हो चुकी है और उनके ऊपर अब सिर्फ यही है कि एक दूसरे की गलती की आपस में शिकायत करें या बगैर शिकायत के एक दूसरे को माफ कर दें।
और मुसलमान को चाहिए कि वह अपने मुसलमान भाई से हाथ मिलाते समय मुस्कान के साथ मिले और उसके लिए दुनिया और आखिरत में भलाई की दुआ करे।