इस्लाम धर्म के अलावा ऊपर बताए गए शर्तों को पूरा करने वाला कोई अन्य धर्म नहीं है, वह धर्म जो मानव स्वभाव के अनुसार है, वह धर्म जिसका प्रचार सभी पैगंबरो ने मानवजाति के निर्माण के समय से किया है। आज पाए जाने वाले ईसाई और यहूदी धर्म जैसे अन्य धर्म अपने समय के पैगंबरों द्वारा लाए गए धर्म के अवशेष हैं, जो इस्लाम धर्म था। हालांकि, समय के साथ उन्हें बदल दिया गया और भुला दिया गया, और आज इन धर्मों में जो कुछ बचा है वह सत्य और असत्य का एक मिश्रण है। एकमात्र धर्म जिसे संरक्षित किया गया है, एक ही संदेश का प्रचार करता है और सभी पैगंबरो द्वारा लाया गया है वह इस्लाम धर्म है, एक सच्चा धर्म जो मानव जीवन के सभी क्षेत्रों, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत का मार्गदर्शन करता है, और यह सभी मनुष्यों के ऊपर है कि वे इस धर्म की जांच करें, इसकी सच्चाई का पता लगाएं और इसका पालन करें।
जो लोग मानते हैं कि सत्य सापेक्ष है और सभी की आस्था सही हैं और यह कहना संभव नहीं है कि किसी व्यक्ति की आस्था गलत हैं क्योंकि धर्म उनके लिए विशुद्ध रूप से एक व्यक्तिगत आस्था है। ऐसा कहने का असत्य साफ दिखता है कि वो इसे सिद्ध करने के लिए अधिक विस्तार में नहीं जाना चाहते। जहां एक धर्म यह मानता है कि यीशु एक झूठे पैगंबर थे, दूसरा यह मानता है कि वह ईश्वर हैं, और तीसरा यह मानता है कि वह एक मुनष्य थे जिन्हे विशेष रूप से पैगंबर बनाने के लिए चुना गया था, तो ये सभी सत्य कैसे हो सकते हैं? यीशु (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) अनिवार्य रूप से ऊपर वर्णित तीनों में से एक होने चाहिए, और तीनों चीज़ें सही नहीं हो सकती। इसलिए चूंकि इन चीज़ों में से केवल एक ही सही हो सकती है, और जिसे भी सत्य माना जायेगा वह यह निर्धारित करेगा कि अन्य असत्य हैं।
हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार विश्वास करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह एक ऐसा अधिकार है जिसे ईश्वर ने सभी मनुष्यों को दिया है। लेकिन साथ ही इसका मतलब यह नहीं है कि किसी को यह कहना चाहिए कि वे सभी सही हैं, और किसी को उनके बारे में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। साथ ही, किसी व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार विश्वास करने का अधिकार देने का मतलब ये नहीं है कि उन्हें इन मान्यताओं का खुले तौर पर अभ्यास करने या प्रचार करने का अधिकार है, क्योंकि समाज में लागू कानून हमेशा बड़े सामाजिक स्तर पर कार्यों के प्रभावों को देखते हैं और देखते हैं कि क्या वे कार्य बड़े पैमाने समाज के लिए फायदेमंद हैं या हानिकारक।
हमने जो चर्चा की है उससे हम स्पष्ट रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आज दुनिया में जितने भी धर्म पाए जाते हैं वे या तो सभी झूठे हैं, या उनमें से एक है जो व्यापक सत्य है; हालांकि विभिन्न धर्मों में समानताएं हैं, लेकिन उनमें मूलभूत अंतर भी हैं।
अगर हम कहें कि आज दुनिया में कोई भी धर्म सही नहीं है, तो इसका मतलब यह होगा कि ईश्वर अन्यायी है क्योंकि उसने हमें चीजों को करने का सही तरीका बताये बिना पाप और अपराध में पृथ्वी पर भटकने के लिए छोड़ दिया है, और यह एक न्यायपूर्ण ईश्वर के लिए असंभव है। इसलिए एकमात्र तार्किक निष्कर्ष यह है कि एक धर्म सच्चा है, जिसमें जीवन के सभी क्षेत्रों जैसे धार्मिक, नैतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत के लिए मार्गदर्शन है।
हम ये कैसे जानेंगे कि एक सच्चा धर्म क्या है? इसका पता लगाना हर इंसान का काम है। मनुष्य केवल खाने, सोने, अपनी दैनिक जीविका खोजने और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि एक महान उद्देश्य को पूरा करने के लिए पैदा किया गया था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए व्यक्ति को यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि उसका उद्देश्य क्या है और यह केवल जांच करने से ही हो सकता है। यदि कोई मानता है कि ईश्वर है, और यह कि ईश्वर ने मनुष्यों को अन्यायपूर्ण तरीके से भटकने के लिए नहीं छोड़ा है, तो उन्हें उस धर्म और जीवन शैली की खोज करनी चाहिए जिसे ईश्वर ने बनाया है। इसके अलावा यह धर्म मनुष्यों के ढूंढने और समझने के लिए छिपा हुआ या कठिन नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह मार्गदर्शन का उद्देश्य खत्म कर देगा। इसके अलावा धर्म में हर समय एक ही संदेश होना चाहिए, क्योंकि हमने उल्लेख किया है कि सब कुछ एक पूर्ण सत्य है। साथ ही इस धर्म में कोई असत्य या अंतर्विरोध नहीं हो सकता, क्योंकि धर्म के एक भी मामले में झूठ या अंतर्विरोध पुरे धर्म की असत्यता को साबित करता है, क्योंकि तब हम इसके ग्रंथों की अखंडता पर संदेह करने लगेंगे।